(आज से मुम्बई ब्लॉग में मैं कहानियों की एक नई श्रृंखला की शुरुआत कर रहा हूं. मेरी कहानियों का नायक तो मुझे मिल गया है लेकिन उसका नामकरण संस्कार होना अभी बाकी है. ब्लॉग बिरादरी से मेरा यह आग्रह है कि मेरी कहानी के नायक के लिए कोई बढ़िया-सा नाम सुझाये. नाम देने के लिए मेरा नायक आप सबका आभारी रहेगा.) वो भीख नहीं मांगता अमूमन उसके जैसे लड़के स्टेशनों पर भीख़ ही मांगते हैं मगर वो अंधेरी स्टेशन पर पानी की बोतलें बेचता है. दस रुपये की एक बोतल के पीछे उसे दो रुपये मिल जाते हैं. इससे ज्यादा तो उसके साथी भगवान या अल्लाह के नाम पर कमा लेते हैं... शायद किसी स्वाभिमानी का खून है ये. उसकी उम्र अभी यही कोई नौ-दस होगी मगर बला की फूर्ति है लड़के में. जब से उसे देखा है ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं रह गयी है, उल्टे खुद पर कोफ़्त हो रही है कि अब तक ज़िंदगी से शिकायत ही क्यों थी? उस दिन सबेरे खचाखच भरी चर्चगेट लोकल में उल्टी तरफ गेट पर खड़ा ललित नारायण मिश्रा से लेकर लालू यादव तक, सभी रेलमंत्रियों को मन-ही-मन कोस रहा था. अंधेरी स्टेशन पर लोकल पहुंची, प्लेटफॉर्म की तरफ वाली गेट पर चढ़ने-उतरने वालों के रेला का इस तरफ ...