यह महज़ एक संयोग है कि दफ्तर में हुई देरी की वजह से मैं उन सात ट्रेनों में किसी में नहीं था, नहीं तो क्या होता? इस कल्पना भर से दिल बैठा जा रहा है. साथ ही उन अभागों के लिए आंखे नम हैं जो मेरे सहयात्री हुआ करते थे. उस दिन कहाँ तो इस बात की योजना बना रहा था कि आज पत्नी अलका के जन्मदिन पर उसे क्या तोहफ़ा दिया जाए… मगर शाम तक यह मंगलवार पूरी मुम्बई के लिए अमंगलकारी हो चुका था. विस्फोटों की ख़बर जंगल में आग की तरह फैली, दफ्तर में हमारे बॉस ने यथाशीघ्र घर जाने का निर्देश दे दिया. लेकिन टेलीविजन पर ट्रेन सेवा के पूरी तरह ठप होने की ख़बरें आ रही थीं. चिंता इस बात की थी कि अंधेरी में अपने ऑफ़िस से मीरा रोड अपने घर कैसे पहुंच पाऊंगा? तभी मेरे साथ एक और संयोग हुआ, मेरा छोटा भाई (जिसका कभी कभार ही मेरे दफ़्तर की तरफ़ आना होता है) अपनी मोटरसाइकिल लेकर किसी काम से मेरे दफ्तर के पड़ोस में आया हुआ था. दोनों भाई अंधेरी लिंक रोड से गोरेगांव एसवी रोड होते वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे की तरफ बढ़ें. सड़कों पर भीड़ बड़ी तेजी से बढ़ रही थी, जल्दी ही सड़कों पर क्षमता से बहुत अधिक वाहन थे. ह...
सपनों के शहर में हक़ीकत से जद्दोजहद