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Showing posts from October, 2005

चांद बिक गया

अब तो आशिकों की आफ़त आई समझो... ग़लती से भी कहीं माशूका के सामने कह दिया कि 'मेरी जान! तुम कहो तो तुम्हारे लिए चांद तोड़ लाऊं', तो समझो मियां आप तो फंसे. बच्चों की लोरी से लेकर आशिकों की शायरी तक में चांद की रुमानियत को पाना हसीन ख़्वाब रहा है. लेकिन अब शायद ऐसा न रहे... क्योंकि चांद का काफी हिस्सा बिक गया है. जो बचा है उसकी भी दुकान सजी है. हां यह बात दीगर है कि खरीदने जाओ तो धरती पर अपना घर-द्वार बेचना पड़ जाये.

हनुमान बने बॉलीवुड के संकटमोचन

अभी-अभी मैं एनिमेशन फिल्म हनुमान देखकर आ रहा हूं. मजा आ गया. फिल्म की पूरी टीम बधाई की पात्र है. ऐसे प्रयासों को देखकर अब यकीन हो चला है कि बॉलीवुड में अभी जिने की तमन्ना बाकी है. इस फिल्म की तीन बातों के लिए तारीफ करनी होगी: 1. उच्च तकनीक का बेहतर इस्तेमाल 2. पश्चिम की नकल न करके अपने पौराणिक कथावस्तु की क्षमता में यकीन 3. हनुमान के बाल रूप का बेहतर चित्रण संगीत और संवाद वगैराह भी अच्छे रहे. कुल मिलाकर हनुमान एक साहसिक प्रयास है जो बॉलीवुड की तरफ से कुछ नया नहीं मिलने की शिकायत करने वालों को जरूर पसंद आयेगा. , पता नहीं बजरंगबली बॉक्स ऑफिस पर अपनी ताकत दिखा पायेंगे या नहीं पर इस फिल्म ने मुझे बेहद प्रभावित किया है. उम्मीद है आपको भी पसंद आयेग़ी. पर एक मिनट रूकिए... भाभीजी और बच्चों को साथ ले जाना मत भूलिएगा.

नवरात्र माहात्म्य

नवरात्र के महत्व के बारे में दैनिक 'आज' में पूर्व प्रकाशित मेरा आलेख हिन्दू पंचागके अनुसार आश्विन मासके शुक्ल पक्षकी प्रतिपदा तिथिको नवरात्रिका आरम्भ होता है. शरद ऋतुमें होने के कारण इसे शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है. 'मारकण्डेय पुराण' अध्याय 89 श्लोक 11 में कहा भी गया है कि 'शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी' और 'निर्णयसिन्धु' नामक धार्मिक विवादोंका समाधान करने वाला ग्रंथ भी यही मानता है. परंतु संस्कृतके प्रसिद्ध वैयाकरण नागोजी भट्टने 'वार्षिकी' को वासंती नवरात्र बोधक कहा है. 'निर्णयामृत' और 'समय मयूख' जैसे ग्रंथ भी इसका समर्थन करते हैं. ऐतिहासिक दृष्टिसे दुर्गापूजाका वर्तमान रूप कमोवेश दो हजार वर्ष पुराना है. षोडश मातृका अर्द्धनारीश्वर और देवीके गलेमें कपालमालाका उल्लेख महाकवि कालिदास कृत 'कुमार संभवम' में भी मिलता है. जिसका समय ईसापूर्व प्रथम शताब्दी है. इस तिथिपर भले ही विवाद हो लेकिन प्रथम-द्वितीय शताब्दीके कुषाण राजा कनिष्कके (या उसके बाद चंद्रगुप्त प्रथमके भी) सिक्कोंपर दुर्गाका वर्तमान रूप मिलता है. 'नवरात...

अकेली मां ही नहीं अब अकेला बाप भी

कभी-कभी कोई छोटी-सी घटना बड़ी बहस को जन्म दे देती है. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक इन्फ़र्टिलिटी क्लीनिक में रविवार को जन्मे बच्चे अर्जुन ने समाज और कानून के स्तर पर कुछ ऐसी तरह की बहस की शुरुआत की है. (ख़बर यहां पढ़िये) तकनीक की मदद से मां बनती अकेली महिलाओं पर बहस अभी थमा भी नहीं कि अकेले बाप का मुद्दा हमारे सामने है. अकेली मां बनने के पीछे वजह जो भी गिनाया जाता रहा हो मगर मेरी समझ से असली मकसद महिलाओं द्वारा पुरुष प्रधान समाज को चुनौती देना ही है. ऐसे में एक तलाकशुदा पुरुष द्वारा अकेला बाप बनने का निर्णय लेना कहीं उस चुनौती का जवाब तो नहीं? एक तरफ तो इस तरह के मातृत्व या पितृत्व सुख में अपने विपरीत लिंगी साथी की भागीदारी को नकारा जा रहा है वहीं कुछ देशों में समलिंगी विवाह (?) को मिल रही मान्यता एक डर पैदा कर रही है. मैं यह सोचने को विवश हो गया हूं कि कहीं समाज की मूलभूत संरचना में ही तो बदलाव नहीं हो रहा है?

"भोजपुरिया" का पदार्पण

मुम्बई ब्लॉग के माध्यम से यह सूचित करते हुए मुझे अपार हो रहा है कि ब्लॉग जगत में हिंदी की छोटी बहन भोजपुरी को समर्पित एक ब्लॉग "भोजपुरिया" का पदार्पण हो चुका है. संभवत: यह भोजपुरी का पहला ब्लॉग है. "भोजपुरिया" सिर्फ ब्लॉगिंग न होकर पॉडकास्टिंग भी है जिसमें भोजपुरिया को आवाज़ देने की भी कोशिश की गई है. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि जिस तरह आपने "मुम्बई ब्लॉग" को अपना स्नेह दिया है वैसा ही प्यार "भोजपुरिया" को भी मिलेगा. धन्यवाद.