अब तो आशिकों की आफ़त आई समझो... ग़लती से भी कहीं माशूका के सामने कह दिया कि 'मेरी जान! तुम कहो तो तुम्हारे लिए चांद तोड़ लाऊं', तो समझो मियां आप तो फंसे. बच्चों की लोरी से लेकर आशिकों की शायरी तक में चांद की रुमानियत को पाना हसीन ख़्वाब रहा है. लेकिन अब शायद ऐसा न रहे... क्योंकि चांद का काफी हिस्सा बिक गया है. जो बचा है उसकी भी दुकान सजी है. हां यह बात दीगर है कि खरीदने जाओ तो धरती पर अपना घर-द्वार बेचना पड़ जाये.
सपनों के शहर में हक़ीकत से जद्दोजहद