Skip to main content

"भोजपुरिया" का पदार्पण

मुम्बई ब्लॉग के माध्यम से यह सूचित करते हुए मुझे अपार हो रहा है कि ब्लॉग जगत में हिंदी की छोटी बहन भोजपुरी को समर्पित एक ब्लॉग "भोजपुरिया" का पदार्पण हो चुका है. संभवत: यह भोजपुरी का पहला ब्लॉग है. "भोजपुरिया" सिर्फ ब्लॉगिंग न होकर पॉडकास्टिंग भी है जिसमें भोजपुरिया को आवाज़ देने की भी कोशिश की गई है. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि जिस तरह आपने "मुम्बई ब्लॉग" को अपना स्नेह दिया है वैसा ही प्यार "भोजपुरिया" को भी मिलेगा.
धन्यवाद.

Comments

Anonymous said…
बधाई हो शशि,

मुझे तो भोजपुरी आती नहीं, पर जिन्हें आती है उन्हें ये वाकई पसंद आएगा.

सरोज
rookie_journo said…
Mujhe Bhojpuri aati hey, par type kaise karun ??

Well done bro!

Popular posts from this blog

नौकरी चाहिये तो हिन्दी पढ़ो

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के पूर्व उप-मुख्यमंत्री की नौकरी जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आर.आर. पाटील इन दिनों क्या कर रहे हैं? इन दिनों वे अपनी हिन्दी सुधारने लगे हैं। आबा के नाम से मशहूर श्री पाटिल को मलाल है कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया जिससे उनकी नौकरी चली गई। मतलब ये कि उन्होंने जो कुछ भी ग़लत हिन्दी में कहा उसका मतलब कुछ और था। (अब चलिये मतलब आप हिन्दी सीखकर कभी समझा दीजियेगा।) पूरा पढ़ें

मुम्बई ब्लॉगर मीट और बची हुई कलेजी

बाज़ार में हुई मारामारी के बीच मुम्बई ब्लॉगर मीट के भी खूब चर्चे रहे। वैसे तो सबने इस मीट को तेल-मसाला डालकर, छौंक-बघार लगाकर मजे से पकाया, खाया-खिलाया। बिना किसी परेशानी के इस मीट को लोग पचा भी गये… जो पचने से रह गया उसे अब तक तो सब संडास के भी हवाले कर चुके होंगे। अब आप कहेंगे कि जब सब कुछ हो चुका तो मैं मटियाने की जगह फिर से उस मीट को लेकर क्यों बैठ गया। अरे भैया, वो इसलिए कि जब मीट पक रहा था तभी मैंने कड़ाही में से कलेजी निकालकर कटोरी में डालकर फ्रीज में छूपा दिया था। आइये उस कलेजी का स्वाद चखें… बहुत दिनों तक चिट्ठाकारी की दुनिया में अंग्रेजन के इ दहेजुआ नगरी मुम्बई का झंडा उठाये-उठाये हमरा हाथ टटा गया था… बड़ा सकुन मिला जब हमरी कठपिनसिन की जगह प्रमोद भाई और अभय भाई जैसों की शानदार कलम ने ली। लगा जैसा धर्मवीर भारती और राजेन्द्र माथुर मुम्बई की प्रतिष्ठा बचाने मैदान में आ गये हों। हमरी खुशी को तो अभी अंधेरी लोकल की जगह विरार फास्ट की सवारी करनी थी। पता चला कि रफी साहब ने युनुस भाई का रूप धरा है और धीरूभाई की आत्मा अपने कमल शर्माजी के भीतर आ घूसी है। बड़ी तमन्ना थी इन महानुभवों से मिलन...

जेठ की कजरी

जेठ की उमस भरी दुपहरी बेचैन-सी कजरी हाय रे, बनाती तू अमीरों के महले-दूमहले झोपड़ी मयस्सर न तुझे रे कजरी पेड़ पर टांगा है पुरानी धोती का पालना जिस पर झूलता है तेरा लालना सिर पर गारे की तगाड़ी संभाले एक हाथ दूसरे हाथ में है मलिन चीथड़े का पल्लू क्या संभाले वो एक में है उसके भूखे बच्चे की रोटी दूसरे हाथ में अस्मिता है सिमटी करती वो परवाह किसकी देता उसे क्या जमाना भूखे गिद्ध-सी नजरे और हवस का नजराना जीतती है मां, हारती यौवना नहीं वो सिर्फ यौवना,एक मां भी है जिसे पूजता सारा जमाना