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नौकरी चाहिये तो हिन्दी पढ़ो

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के पूर्व उप-मुख्यमंत्री की नौकरी जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आर.आर. पाटील इन दिनों क्या कर रहे हैं? इन दिनों वे अपनी हिन्दी सुधारने लगे हैं। आबा के नाम से मशहूर श्री पाटिल को मलाल है कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया जिससे उनकी नौकरी चली गई। मतलब ये कि उन्होंने जो कुछ भी ग़लत हिन्दी में कहा उसका मतलब कुछ और था। (अब चलिये मतलब आप हिन्दी सीखकर कभी समझा दीजियेगा।) पूरा पढ़ें

ब्लॉग बना चिट्ठा, जम गई चिट्ठाकारिता

इंटरनेट पर इन दिनों ब्लॉगिंग की खूब चर्चा है, हालाँकि इसकी शुरुआत तकरीबन दस साल पहले अँग्रेजी में हुई थी मगर अब हिंदी लिखने-पढ़ने वालों में भी यह विधा लोकप्रिय हो चली है. ब्लॉग यानी इंटरनेट पर डायरीनुमा व्यक्तिगत वेबसाइटें, जिसके लिए हिंदी में ‘चिट्ठा’ नाम प्रचलित और स्थापित हो चुका है. महज साढ़े चार साल पहले हिंदी ब्लॉग लेखन की शुरुआत हुई थी और आज हिंदी चिट्ठों की तादाद हज़ार से ऊपर है. मगर इस विधा को हिंदी में अपनाना कोई आसान काम नहीं था. शुरुआती दौर को तकनीकी गुरू और चिट्ठाकार रवि रतलामी कुछ यों याद करते है, “उन दिनों दो सवाल खूब पूछे जाते थे. पहला तो ये कि कंप्यूटर पर हिंदी नहीं दिखती, क्या करें? और दूसरा ये कि हिंदी दिखती तो है मगर हिंदी में लिखें कैसे?” ये सवाल हालाँकि लोग अब भी पूछते हैं लेकिन भोमियो और गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेशन टूल जैसी सुविधाओं के आ जाने से देवनागरी लिखना पहले के मुक़ाबले बहुत आसान हो गया है. इंटरनेट पर हिंदी और ब्लॉगिंग से जुड़ी ऐसी तमाम परेशानियों को दूर करने के उद्देश्य से तकनीक के जानकार चिट्ठाकार अपने चिट्ठों पर समय-समय पर लिखते रहे हैं जिन्हें खू...

मुम्बई ब्लॉगर मीट और बची हुई कलेजी

बाज़ार में हुई मारामारी के बीच मुम्बई ब्लॉगर मीट के भी खूब चर्चे रहे। वैसे तो सबने इस मीट को तेल-मसाला डालकर, छौंक-बघार लगाकर मजे से पकाया, खाया-खिलाया। बिना किसी परेशानी के इस मीट को लोग पचा भी गये… जो पचने से रह गया उसे अब तक तो सब संडास के भी हवाले कर चुके होंगे। अब आप कहेंगे कि जब सब कुछ हो चुका तो मैं मटियाने की जगह फिर से उस मीट को लेकर क्यों बैठ गया। अरे भैया, वो इसलिए कि जब मीट पक रहा था तभी मैंने कड़ाही में से कलेजी निकालकर कटोरी में डालकर फ्रीज में छूपा दिया था। आइये उस कलेजी का स्वाद चखें… बहुत दिनों तक चिट्ठाकारी की दुनिया में अंग्रेजन के इ दहेजुआ नगरी मुम्बई का झंडा उठाये-उठाये हमरा हाथ टटा गया था… बड़ा सकुन मिला जब हमरी कठपिनसिन की जगह प्रमोद भाई और अभय भाई जैसों की शानदार कलम ने ली। लगा जैसा धर्मवीर भारती और राजेन्द्र माथुर मुम्बई की प्रतिष्ठा बचाने मैदान में आ गये हों। हमरी खुशी को तो अभी अंधेरी लोकल की जगह विरार फास्ट की सवारी करनी थी। पता चला कि रफी साहब ने युनुस भाई का रूप धरा है और धीरूभाई की आत्मा अपने कमल शर्माजी के भीतर आ घूसी है। बड़ी तमन्ना थी इन महानुभवों से मिलन...

पॉडभारती यानी अपनी बोली में अपनी बात

पॉडपत्रिका पॉडभारती का पहला अंक जारी कर दिया गया है। कार्यक्रम का संचालन किया है देबाशीष चक्रवर्ती ने और परिकल्पना है देबाशीष और शशि सिंह की। इस प्रथम अंक में आप सुनेंगे। हिन्दी चिट्ठाकारी ने अप्रेल 2007 में चार साल पूरे किये हैं। ये फासला कोई खास तो नहीं पर कई लोग इसी बिना पर पितृपुरुष और पितामह कहलाये जाने लगे हैं और अखबारों में छपने लगे हैं। पॉडभारती के लिये चिट्ठाकारी के इस छोटे सफर का अवलोकन कर रहे हैं लोकप्रिय चिट्ठाकार अनूप शुक्ला । गूगल के हिन्दी ट्रांसलिटरेशन टूल के प्रवेश से हिन्दी चिट्ठाकारी को एक नया आयाम मिला है। इस टूल के बारे में और जानकारी देंगे टेकगुरु रविशंकर श्रीवास्तव । मोहल्ला हिन्दी का एक नया पर चर्चित ब्लॉग है। यहाँ इरफान के हवाले से लिखे एक लेख ने ऐसा हंगामा बरपा किया कि हिन्दी चिट्ठाजगत ही ध्रुवों में बंट गया। बहस वाया सांप्रदायिकता लानत मलानत और एक दूसरे के गिरेबान तक जा पहूंची। मुहल्ला पर अविनाश के माफ़ीनामे तक से मामला अब तक ठंडा नहीं पड़ा। इसी संवेदनशील विषय पर सुनिये पॉडभारती के शशि सिंह की खास रपट। आपको हमारा ये प्रयास कैसा लगा, हमें टिप्पणी द्वारा या ...

गुरू के गुरू मनिरत्नम

कहीं पढ़ा था कि फिल्म गुरू के प्रीमियर पर जुनियर बच्चन का अभिनय देख बिग बी की आंखें नम हो गई. हो भी क्यों न? किसी भी बेटे की तरक्की पर हर पिता इसी तरह तो खुशी मनाते हैं. गुरू फिल्म में छोटे बच्चन वाकई बड़े हो गये दीखते हैं. अमिताभ बच्चन के बेटे होने के नाते अभिषेक की झोली हमेशा फिल्मों से भरी रही लेकिन वे एक बेहतर अभिनेता भी हैं इसकी झलक मनिरत्नम की ही फिल्म युवा में देखने को मिली थी. मनिरत्नम ने युवा फिल्म में अभिषेक के भीतर अभिनय का जो पौधा लगाया था गुरू तक वो एक बरगद का रूप ले चुका है. इस फिल्म में अभिषेक ने क्या कमाल का अभिनय किया है. यूं तो इस फिल्म में बहुत कुछ है देखने को लेकिन अगर किसी एक चीज के लिए यह फिल्म देखनी हो तो बेशक़ वो बात अभिषेक का अभिनय ही है. फिर भी इसका सारा श्रेय मैं अभिषेक को नहीं दूंगा. अगर दर्शक भूले न हों तो कुछ दिनों पहले ही धूम 2 में इसी अभिषेक पर ऋतिक बहुत भारी पड़े थे. बात साफ है श्रेय निर्देशक मनिरत्नम के सिर. मनिरत्नम हमेशा से ही मुख्यधारा में घुसकर सार्थक फिल्में बनाते रहे हैं. राजकपूर की तरह समसामयिक सामाजिक मुद्दों को अपनी फिल्मों की विषयवस्तु बनाने वाले...

मिश्री की डली: मैथिली

अब तक मैंने आपको भोजपुरी लोकसंगीत सुनाया. आज आपको सुनाता हूं दुनिया की मधुरतम भाषाओं में से एक मैथिली के कुछ लोकगीत. इन लोकगीतों का आनंद लीजिये और शुक्रिया कहिये बीबीसी हिंदी की टीम को जिन्होंने इस विषय पर आज सवेरे एक विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया. यह ऑडियो क्लिप उसी कार्यक्रम का हिस्सा है. मिश्री की डली