Monday, June 06, 2005

अश्रु


समय का एक पल
चुभ गया हृदय में शूल बनकर
असह्य वेदना देख हृदय की
अश्रु हुआ विह्वल
घड़ी यह उसकी परीक्षा की
खुली पलकों की खिड़की
नम पुतलियों का छूटता आलिंगन
काजल की चौखट को कर पार
ठपकी बूंद बनकर कपोल पर
चुभ गया यह
विरह का एक पल बनकर
हरा रहेगा घाव सदा अश्रु का
कपोल पर सूख भले ही बूंद जाए

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