समय का एक पल
चुभ गया हृदय में शूल बनकर
असह्य वेदना देख हृदय की
अश्रु हुआ विह्वल
घड़ी यह उसकी परीक्षा की
खुली पलकों की खिड़की
नम पुतलियों का छूटता आलिंगन
काजल की चौखट को कर पार
ठपकी बूंद बनकर कपोल पर
चुभ गया यह
विरह का एक पल बनकर
हरा रहेगा घाव सदा अश्रु का
कपोल पर सूख भले ही बूंद जाए
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