Wednesday, October 05, 2005

अकेली मां ही नहीं अब अकेला बाप भी

अमित बनर्जी अर्जुन के साथ बहुत ख़ुश हैं
कभी-कभी कोई छोटी-सी घटना बड़ी बहस को जन्म दे देती है. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक इन्फ़र्टिलिटी क्लीनिक में रविवार को जन्मे बच्चे अर्जुन ने समाज और कानून के स्तर पर कुछ ऐसी तरह की बहस की शुरुआत की है. (ख़बर यहां पढ़िये)
तकनीक की मदद से मां बनती अकेली महिलाओं पर बहस अभी थमा भी नहीं कि अकेले बाप का मुद्दा हमारे सामने है. अकेली मां बनने के पीछे वजह जो भी गिनाया जाता रहा हो मगर मेरी समझ से असली मकसद महिलाओं द्वारा पुरुष प्रधान समाज को चुनौती देना ही है. ऐसे में एक तलाकशुदा पुरुष द्वारा अकेला बाप बनने का निर्णय लेना कहीं उस चुनौती का जवाब तो नहीं?
एक तरफ तो इस तरह के मातृत्व या पितृत्व सुख में अपने विपरीत लिंगी साथी की भागीदारी को नकारा जा रहा है वहीं कुछ देशों में समलिंगी विवाह (?) को मिल रही मान्यता एक डर पैदा कर रही है. मैं यह सोचने को विवश हो गया हूं कि कहीं समाज की मूलभूत संरचना में ही तो बदलाव नहीं हो रहा है?

No comments: