पिछले एक हफ्ते से मुम्बई में हो रही भारी बारिस कहीं तेज रफ्तार शहर की गति को धीमा न कर दे इसी जद्दोजहद में कुर्ला स्टेशन के नजदीक लगे हुए हमारे कर्मठ रेलकर्मी. (चित्र: बी.एल.सोनी) mid-day
इन दिनों मुम्बई में एक बड़ी बहुराष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनी में मैनेजरी कर रहा हूं। यहां अपनी भूमिका मोबाइल पर मूल्य वर्धित सेवाएं (Value Added Services) के लिए उपयोगी बॉलीवुड और क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री की पहचान और विकास की जिम्मेदारी है। वैसे ये काम भी मीडिया से जुड़ा है लेकिन थोड़े अलग मिजाज का है… जिसको समझने की कोशिश में हूं।
कर्मभूमि मुम्बई है लेकिन जड़े झारखंड के कोयला खदानों से होती हुई बिहार में सरयू नदी के तीर तक जाती है। भोजपुरी, नागपुरी व हिंदी मेरी कमजोरी… न… न… मेरी ताकत हैं. बच्चे मुझे बेहद पसंद हैं. उनकी एक मुस्कान मेरे लिए भारी से भारी तनाव में रामवाण साबित होता है. शायद भगवान ने इसीलिए एक प्यारे से बेटे वेदांत का बाप बना दिया है. घर में वेदांत की मां, मेरे माता-पिता और दो छोटे भाई हैं. बस हो गया यार… अब और क्या जानना चाहते हो?
1 comment:
इसी तरह की कर्मपरायणता की जरूरत है इस देश को । इनका यह काम निश्चित ही अनुकरणीय है ।
अनुनाद
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