आज मुम्बई में मौसम की सबसे जोरदार बारिश हुई है जो अभी लगातार जारी है. जिससे शहर की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. अभी रात के 11.30 बजे भी सड़कों पर है गाड़ियों की लम्बी कतारें और हैरान-परेशान लोग. यहां की जीवन रेखा कहीं जाने वाली लोकल ट्रेनों की रफ्तार भी धीमी पड़ गई है. रफ्तार के इस शहर में मानो सबकुछ थम-सा गया है.
यहां लोग 40-50 किलोमीटर दूर घंटे-डेढ़ घंटे का सफर कर काम करने मध्य और दक्षिण मुम्बई की ओर आते हैं. यूं तो छिटपुट बारिश पिछले दो-तीन दिनों से हो रही है मगर आज दिन की बारिश में सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया. यहां तक कि कुछ घंटों के लिए फोन सेवाएं भी बुरी तरह बाधित रहीं.
सुबह तक तो लगभग सबकुछ ठीक था. मगर शाम तक कई इलाकों में रेलवे ट्रैक और सड़कों पर पानी भर गया जिससे स्टेशनों पर भारी भीड़ और सड़कों पर गाड़ियों की कतारें दिखने लगी. मेरा घर भी लोअर परेल स्थित मेरे ऑफिस से घंटे भर की दूरी पर है, इसीलिए मैं तो शाम को ही द्फ्तर के पास ही रहने वाले एक दोस्त के घर जा पहुंचा. वहां मीडिया वाले कुछ और दोस्त धमके हुए थे. सबके अलग-अलग सूत्रों से अलग-अलग तरह की ख़बरे मिली. रात को जब फोन सेवाएं बहाल हुईं तो पता चला कि दफ्तर में 250 से 300 लोग फंसे पड़े हैं. इनकी हालत देखने के लिए मैं वापस दफ्तर आ पहुंचा. खैर यहां तो पिकनिक सा माहौल है. मगर बाहर रास्ते पर हालत अब भी बुरी है. जिनके आशियाने हैं वे तो अपने आशियाने तक पहुंचने की कोशिश करते दिखे, मगर वे जिनका ठिकाना फुटपाथ है वो यहां-वहां दुबके पड़े हैं.
मैं तो यह पोस्ट लिखकर दोस्त के घर जा सो जाऊंगा पर सबेरे इस बात पर आश्चर्य नहीं होगा अगर सपने में उन बेघरों के साथ मैं खुद को सड़क पर पाऊं.
यहां लोग 40-50 किलोमीटर दूर घंटे-डेढ़ घंटे का सफर कर काम करने मध्य और दक्षिण मुम्बई की ओर आते हैं. यूं तो छिटपुट बारिश पिछले दो-तीन दिनों से हो रही है मगर आज दिन की बारिश में सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया. यहां तक कि कुछ घंटों के लिए फोन सेवाएं भी बुरी तरह बाधित रहीं.
सुबह तक तो लगभग सबकुछ ठीक था. मगर शाम तक कई इलाकों में रेलवे ट्रैक और सड़कों पर पानी भर गया जिससे स्टेशनों पर भारी भीड़ और सड़कों पर गाड़ियों की कतारें दिखने लगी. मेरा घर भी लोअर परेल स्थित मेरे ऑफिस से घंटे भर की दूरी पर है, इसीलिए मैं तो शाम को ही द्फ्तर के पास ही रहने वाले एक दोस्त के घर जा पहुंचा. वहां मीडिया वाले कुछ और दोस्त धमके हुए थे. सबके अलग-अलग सूत्रों से अलग-अलग तरह की ख़बरे मिली. रात को जब फोन सेवाएं बहाल हुईं तो पता चला कि दफ्तर में 250 से 300 लोग फंसे पड़े हैं. इनकी हालत देखने के लिए मैं वापस दफ्तर आ पहुंचा. खैर यहां तो पिकनिक सा माहौल है. मगर बाहर रास्ते पर हालत अब भी बुरी है. जिनके आशियाने हैं वे तो अपने आशियाने तक पहुंचने की कोशिश करते दिखे, मगर वे जिनका ठिकाना फुटपाथ है वो यहां-वहां दुबके पड़े हैं.
मैं तो यह पोस्ट लिखकर दोस्त के घर जा सो जाऊंगा पर सबेरे इस बात पर आश्चर्य नहीं होगा अगर सपने में उन बेघरों के साथ मैं खुद को सड़क पर पाऊं.
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Anup Singh
Bhopal