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डर हमारी जेबों में



प्रमोद कुमार तिवारीजी के उपन्यास 'डर हमारी जेबों में' का अंश पढ़िये. बड़ा खूबसूरत और मार्मिक है यह... वैसे तो उपन्यास कुछ पुराना है लेकिन इस बार कथा, यूके ने इसे इंदु शर्मा-2005 पुरस्कार से सम्मानित करने का फ़ैसला किया है और इसी से यह पुस्तक एक बार फिर प्रासंगिक हो गई है.
उपन्यास के अंश के लिए यहां क्लिक करें.

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नौकरी चाहिये तो हिन्दी पढ़ो

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के पूर्व उप-मुख्यमंत्री की नौकरी जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आर.आर. पाटील इन दिनों क्या कर रहे हैं? इन दिनों वे अपनी हिन्दी सुधारने लगे हैं। आबा के नाम से मशहूर श्री पाटिल को मलाल है कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया जिससे उनकी नौकरी चली गई। मतलब ये कि उन्होंने जो कुछ भी ग़लत हिन्दी में कहा उसका मतलब कुछ और था। (अब चलिये मतलब आप हिन्दी सीखकर कभी समझा दीजियेगा।) पूरा पढ़ें

जेठ की कजरी

जेठ की उमस भरी दुपहरी बेचैन-सी कजरी हाय रे, बनाती तू अमीरों के महले-दूमहले झोपड़ी मयस्सर न तुझे रे कजरी पेड़ पर टांगा है पुरानी धोती का पालना जिस पर झूलता है तेरा लालना सिर पर गारे की तगाड़ी संभाले एक हाथ दूसरे हाथ में है मलिन चीथड़े का पल्लू क्या संभाले वो एक में है उसके भूखे बच्चे की रोटी दूसरे हाथ में अस्मिता है सिमटी करती वो परवाह किसकी देता उसे क्या जमाना भूखे गिद्ध-सी नजरे और हवस का नजराना जीतती है मां, हारती यौवना नहीं वो सिर्फ यौवना,एक मां भी है जिसे पूजता सारा जमाना