Skip to main content

खाली हाथ

खाली हाथ
न देख इन हाथों को
इस कदर हिकारत से
गर मिल जाए एक पत्थर भी इसे
भगवान बना देते हैं
सजदा करता है तू जिन जवाहरात का
कभी पड़े थे इन्हीं हाथों में एक पत्थर की तरह

Comments

Popular posts from this blog

नौकरी चाहिये तो हिन्दी पढ़ो

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के पूर्व उप-मुख्यमंत्री की नौकरी जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आर.आर. पाटील इन दिनों क्या कर रहे हैं? इन दिनों वे अपनी हिन्दी सुधारने लगे हैं। आबा के नाम से मशहूर श्री पाटिल को मलाल है कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया जिससे उनकी नौकरी चली गई। मतलब ये कि उन्होंने जो कुछ भी ग़लत हिन्दी में कहा उसका मतलब कुछ और था। (अब चलिये मतलब आप हिन्दी सीखकर कभी समझा दीजियेगा।) पूरा पढ़ें

अनुगूँज १५ - हम फिल्में क्यों देखते हैं?

हम फिल्में क्यों देखते हैं? जाहिर सी बात है फिल्में बनती हैं इसलिए हम फिल्में देखते हैं. यकीन मानिये अगर फिल्में नहीं बनतीं तो हम कुछ और देखते. मसलन, कठपुतली का नाच, तमाशा, जात्रा, नौटंकी, रामलीला या ऐसा ही कुछ और. खैर सौभाग्य या दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है इसलिए हम वापस फिल्मों की ओर चलते है. शुरू करते हैं सिनेमाघर में पहली फिल्म देखने से. इस मंदिर में मैंने पहली पूजा स्कूल से निकलने और कॉलेज में दाखिले के पहिले की थी. नाम तो ठीक-ठीक याद नहीं पर फिल्म में हिरोइन अपने अजय देवगन की श्रीमती (तब कुवांरी) काजोल थीं और शायद उनकी भी यह पहली ही फिल्म थी. ( पहली फिल्म देखने में मैंने इतनी देर क्यों की? मुगालते में मत रहिये... शराफत के किस्से आगे हैं.) कोलफील्ड की हमारी कॉलोनी शहर से बीस किलोमीटर दूर थी और हम बच्चों की पूरी दुनिया कॉलोनी तक ही सीमित हुआ करती थी. लिहाजा शहर के सिनेमाघर में यह फिल्म देखना मेरे लिए बड़ा ही साहसिक कदम और नये अनुभवों से भरा था... उस दिन तो मानो खुले आसमान में पहली उड़ान-सा अहसास था. अब चलिए जरा पीछे के कालखंड में चलकर मेरे फिल्में देखने के कारणों की पड़ताल करते हैं. तकर...

"भोजपुरिया" का पदार्पण

मुम्बई ब्लॉग के माध्यम से यह सूचित करते हुए मुझे अपार हो रहा है कि ब्लॉग जगत में हिंदी की छोटी बहन भोजपुरी को समर्पित एक ब्लॉग "भोजपुरिया" का पदार्पण हो चुका है. संभवत: यह भोजपुरी का पहला ब्लॉग है. "भोजपुरिया" सिर्फ ब्लॉगिंग न होकर पॉडकास्टिंग भी है जिसमें भोजपुरिया को आवाज़ देने की भी कोशिश की गई है. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि जिस तरह आपने "मुम्बई ब्लॉग" को अपना स्नेह दिया है वैसा ही प्यार "भोजपुरिया" को भी मिलेगा. धन्यवाद.