Skip to main content

आपातकाल और ब्लॉग की दुनिया

इंदिरा गाँधी आज से तीस साल पहले (तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था) आज की ही रात भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की सबसे स्याह रात साबित हुई थी. जी हां मैं आपातकाल की ही बात कर रहा हूं. शुक्र है हमारी पिछली पीढ़ी ने अपनी जागरूकता की रोशनी से उस अंधेरे को हम तक पहुंचने से पहले ही खत्म कर दिया. आज हम जो ये अपनी ब्लॉग की दुनिया बनाए बैठे हैं, कहीं न कहीं इसका श्रेय उनको ही जाता है. बोलने की आजादी के लिए लड़ी गई उस लड़ाई को याद करने का यह सही मौका है. ब्लॉग जगत के हमारे कई साथी तो उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व भी करते हैं उनसे मेरा आग्रह है कि उन दिनों के अपने अनुभवों को हमारी पीढ़ी की संग बांटें. वैसे ये मुद्दा विश्व स्तर आज भी प्रासांगिक है. अभी हाल ही में Microsoft China ने चीनी ब्लॉग जगत में सेंसरशिप लगा ही दिया है. Microsoft censors Chinese blogs

Comments

लेख बहुत सामयिक है । आधी से ज्यादा बात तो फोटो ही कह दे रहा है । पता नही क्यों मेडम चेहरे से मुसर्रफ़ की बडी बहन लग रही हैं ।

अनुनाद

Popular posts from this blog

नौकरी चाहिये तो हिन्दी पढ़ो

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के पूर्व उप-मुख्यमंत्री की नौकरी जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता आर.आर. पाटील इन दिनों क्या कर रहे हैं? इन दिनों वे अपनी हिन्दी सुधारने लगे हैं। आबा के नाम से मशहूर श्री पाटिल को मलाल है कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण उनके बयानों को गलत संदर्भ में लिया गया जिससे उनकी नौकरी चली गई। मतलब ये कि उन्होंने जो कुछ भी ग़लत हिन्दी में कहा उसका मतलब कुछ और था। (अब चलिये मतलब आप हिन्दी सीखकर कभी समझा दीजियेगा।) पूरा पढ़ें

अनुगूँज १५ - हम फिल्में क्यों देखते हैं?

हम फिल्में क्यों देखते हैं? जाहिर सी बात है फिल्में बनती हैं इसलिए हम फिल्में देखते हैं. यकीन मानिये अगर फिल्में नहीं बनतीं तो हम कुछ और देखते. मसलन, कठपुतली का नाच, तमाशा, जात्रा, नौटंकी, रामलीला या ऐसा ही कुछ और. खैर सौभाग्य या दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है इसलिए हम वापस फिल्मों की ओर चलते है. शुरू करते हैं सिनेमाघर में पहली फिल्म देखने से. इस मंदिर में मैंने पहली पूजा स्कूल से निकलने और कॉलेज में दाखिले के पहिले की थी. नाम तो ठीक-ठीक याद नहीं पर फिल्म में हिरोइन अपने अजय देवगन की श्रीमती (तब कुवांरी) काजोल थीं और शायद उनकी भी यह पहली ही फिल्म थी. ( पहली फिल्म देखने में मैंने इतनी देर क्यों की? मुगालते में मत रहिये... शराफत के किस्से आगे हैं.) कोलफील्ड की हमारी कॉलोनी शहर से बीस किलोमीटर दूर थी और हम बच्चों की पूरी दुनिया कॉलोनी तक ही सीमित हुआ करती थी. लिहाजा शहर के सिनेमाघर में यह फिल्म देखना मेरे लिए बड़ा ही साहसिक कदम और नये अनुभवों से भरा था... उस दिन तो मानो खुले आसमान में पहली उड़ान-सा अहसास था. अब चलिए जरा पीछे के कालखंड में चलकर मेरे फिल्में देखने के कारणों की पड़ताल करते हैं. तकर...