ऐसा मंजर जो कल तक ख़्वाबों की हद में भी नहीं था, आज हकीकत बन हम सब को दहला गया. एक तरफ मुम्बई महानगर सदी की सबसे भयानक बारिश की मार झेल रहा था तो दूसरी तरफ समुद्र के बीच मुम्बई हाई में लपटों का कहर टूट पड़ा. इन दोनों घटनाओं को जब हम एक साथ देखते हैं, तो अपने भीतर गहराई तक पीड़ा का अहसास घर कर जाता है. मुम्बई में 24 घंटों के दौरान लगभग सौ सेंटीमीटर पानी बरस पड़ा. ऐसे समय, जब समन्दर में ज्वार उठा हो, शहर को डूबना ही था.
इस आपदा ने देश की आर्थिक राजधानी को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है. जिंदगी को पटरी पर आने में कुछ समय लगेगा और नुकसान के घाव भी धीरे-धीरे ही भर पाएंगे. एक मुम्बईकर होने के नाते इतना तो यकीन है कि मुम्बई बहुत जल्द अपने पुराने रंग में लौट आयेगी. प्रधानमंत्री का मुम्बईकरों के जज्बे को सलाम करना मेरे इस यकीन को बल देता है. सबसे बड़ी बात तो काबिलेगौर है कि बाढ़, बारिश और अंधकार के उन क्षणों में भी मुम्बईकरों ने धीरज नहीं छोड़ा और गुस्से से परहेज किया. इस बात को न सिर्फ मुम्बई के आकाओं बल्कि केंद्र की सरकार द्वारा भी कद्र की जानी चाहिए.
मुम्बई में बारिश की तस्वीरें
Friday, July 29, 2005
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2 comments:
ये भी विचित्र है कि मुम्बई में पानी मे भी आग लग सकती है ।
लेकिन इस त्रासदी के बाद, सरकारी तत्काल सुविधाओं की क्या पोल खुली है। मुंबई को शंघाई बनाने के सारे सरकारी दावों की धज्जियां उड़ गयीं। पुलिस, अग्निशमन और स्वास्थय सेवाओं के आकाओं का कहीं कोई अता पता नहीं है और न ही उनके पास कोई बेतार संवाद प्रणाली है।
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